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(नया पृष्ठ: {{KKRachnakaarParichay |रचनाकार=द्विज }} अयोध्या के महाराज मानसिंह का ही साहित्य...)
 
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अयोध्या के महाराज मानसिंह का ही साहित्यिक नाम द्विजदेव है। ये जाति के ब्राह्मण थे तथा संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी और अरबी के ज्ञाता थे। 1857 के गदर में इन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया और जागीर प्राप्त की, किन्तु अंत में सब कुछ त्याग कर वृंदावन चले गए। शृंगार की परंपरा में ये अंतिम कवि प्रसिध्द हुए। इनके तीन ग्रंथ प्राप्त हैं- शृंगार बत्तीसी, शृंगार-लतिका तथा शृंगार चालीसी। इनकी कविता में सरसता, सरल भाववेग, सुकुमार कल्पना, सूक्ष्म अनुभूति तथा अप्रतिम सौंदर्य बोध है।