भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"केलंग-2/ पानी / अजेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजेय |संग्रह= }} <poem> बुरे वक़्त में जम जाती है कवित...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:14, 14 अगस्त 2009 का अवतरण
बुरे वक़्त में जम जाती है कविता भीतर
मानो पानी का नल जम गया हो
चुभते हैं बरफ के महीन क्रिस्टल
छाती में
कुछ अलग ही तरह का होता है, दर्द
कविता के भीतर जम जाने का
पहचान में नहीं आता मर्ज़
न मिलती है कोई `चाबी´
`स्विच ऑफ´ ही रहता है अकसर
सेलफोन फिटर का।