भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सभ्य मानव / अंजना संधीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अंजना संधीर |संग्रह= }} <Poem> ईसा! मैं मानव हूँ। तुम्...)
(कोई अंतर नहीं)

13:25, 14 अगस्त 2009 का अवतरण

ईसा!
मैं मानव हूँ।
तुम्हें इस तरह सूली से नीचे नहीं देख सकता!
नहीं तो तुममें और मुझमें क्या अंतर?

बच्चों ने आज
कीलें निकाल कर तुम्हें मुक्त कर दिया
क्योंकि नादान हैं वे
तुम्हारा स्थान कहाँ है
वे नहीं जानते
वे तो हैरान हैं
तुम्हें इस तरह कीलों पर गड़ा देखकर
मौका पाते ही,
तुम्हारी मूर्ति क्रास से अलग कर दी उन्होंने

पर मैं...
मैं सभ्य मानव हूँ
दुनिया में प्रेम, ममत्व, वात्सल्य, उपदेश,
सूली पर टँगा ही उचित है

अत: आओ,
बच्चों की भूल मैं सुधार दूँ
तुम्हें फ़िर कीलों से गाड़ दूँ
क्रास पर लटका दूँ
ताकि, तुम ईसा ही बने रहो।