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"तुम लिखती हो / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर
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कवि प्रेम से भी अधिक
शब्द से प्रेम करता है
प्रेम मिल भी जाता है कभी
शब्द पर कभी नहीं मिलता
कविता कैसे हो तब?
रास्ता यही रहा केवल-
कवि लिखे नहीं
कविता
ख़ुद ही हो जाए
जिसे तुम लिखती हो भाषा।
पा लिया क्या तुमने
मुझमें अपना वह शब्द।