"उपलब्धि / नोमान शौक़" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=नोमान शौक़ | |रचनाकार=नोमान शौक़ | ||
}} | }} | ||
+ | <poem> | ||
+ | कोई दोष नहीं दिया जा सकता | ||
+ | अपनी ही चुनी हुई सरकार को | ||
− | + | सरकार के पास | |
− | + | धर्म होता है अध्यात्म नहीं | |
+ | पुस्तकें होती हैं ज्ञान नहीं | ||
+ | शब्द होते हैं भाव नहीं | ||
+ | योजनाएँ होती हैं प्रतिबध्दता नहीं | ||
+ | शरीर होता है आत्मा नहीं | ||
+ | मुखौटे होते हैं चेहरा नहीं | ||
+ | आँखें होती हैं आँसू नहीं | ||
+ | बस, मौत के आँकडे होते हैं | ||
+ | मौत की भयावहता नहीं | ||
− | + | सब कुछ होते हुए | |
− | + | कुछ भी नहीं होता | |
− | + | सरकार के पास ! | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | मैं तो | |
− | + | बस झुंझलाना, ग़ुस्सा करना | |
− | + | और चीख़ना जानता हूं | |
+ | मुझसे मत पूछो | ||
+ | मेरी उपलब्धियों के बारे में | ||
− | मैं | + | मैं |
− | + | मंत्री, अभिनेता | |
− | + | या क्रिकेट स्टार नहीं | |
− | + | मुझे इक़रार है | |
− | मेरी | + | मैंने कोई शोध नहीं किया |
+ | मुझे विश्वास है | ||
+ | कोई मिसाइल, कोई बम | ||
+ | नहीं बनाया मैंने | ||
+ | यहां तक कि | ||
+ | किसी प्रकाशक ने नहीं छापी | ||
+ | मेरी कोई किताब भी | ||
− | + | हां ! | |
− | + | देखा है मैंने | |
− | + | एक सहमी हुई औरत से छीनकर | |
− | + | साल भर के बच्चे को | |
− | + | आग में झोंके जाते हुए | |
− | + | लेकिन | |
− | + | दूसरे तमाशबीनों की तरह | |
− | नहीं | + | सो नहीं गया मैं चुपचाप |
− | + | अपनी अन्तरात्मा का तकिया बनाकर | |
− | + | बल्कि चीख़ता रहा | |
− | + | चीख़ता रहा | |
− | + | अगर | |
− | + | तुम जाग रहे हो | |
− | + | तो मेरी चीख़ ही | |
− | + | मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है ! | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | अगर | + | |
− | तुम जाग रहे हो | + | |
− | तो मेरी चीख़ ही | + | |
− | मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है !< | + |
16:04, 16 अगस्त 2009 का अवतरण
कोई दोष नहीं दिया जा सकता
अपनी ही चुनी हुई सरकार को
सरकार के पास
धर्म होता है अध्यात्म नहीं
पुस्तकें होती हैं ज्ञान नहीं
शब्द होते हैं भाव नहीं
योजनाएँ होती हैं प्रतिबध्दता नहीं
शरीर होता है आत्मा नहीं
मुखौटे होते हैं चेहरा नहीं
आँखें होती हैं आँसू नहीं
बस, मौत के आँकडे होते हैं
मौत की भयावहता नहीं
सब कुछ होते हुए
कुछ भी नहीं होता
सरकार के पास !
मैं तो
बस झुंझलाना, ग़ुस्सा करना
और चीख़ना जानता हूं
मुझसे मत पूछो
मेरी उपलब्धियों के बारे में
मैं
मंत्री, अभिनेता
या क्रिकेट स्टार नहीं
मुझे इक़रार है
मैंने कोई शोध नहीं किया
मुझे विश्वास है
कोई मिसाइल, कोई बम
नहीं बनाया मैंने
यहां तक कि
किसी प्रकाशक ने नहीं छापी
मेरी कोई किताब भी
हां !
देखा है मैंने
एक सहमी हुई औरत से छीनकर
साल भर के बच्चे को
आग में झोंके जाते हुए
लेकिन
दूसरे तमाशबीनों की तरह
सो नहीं गया मैं चुपचाप
अपनी अन्तरात्मा का तकिया बनाकर
बल्कि चीख़ता रहा
चीख़ता रहा
अगर
तुम जाग रहे हो
तो मेरी चीख़ ही
मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है !