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"फुटकर शे’र / नज़्म तबा तबाई" के अवतरणों में अंतर
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न शोख़ी क हया की वज़अ़ में अब फ़र्क़ आता है। | न शोख़ी क हया की वज़अ़ में अब फ़र्क़ आता है। | ||
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गु़बार ऊँचा न हो जाय कहीं हम ख़ाकसारों का॥ | गु़बार ऊँचा न हो जाय कहीं हम ख़ाकसारों का॥ | ||
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लिहाज़ इतना अभी तक हज़रते-नासेह का बाकी़ है। | लिहाज़ इतना अभी तक हज़रते-नासेह का बाकी़ है। | ||
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वो जो कुछ हुक्म फ़रमाते हैं, कह देते हैं हम ‘अच्छा’॥ | वो जो कुछ हुक्म फ़रमाते हैं, कह देते हैं हम ‘अच्छा’॥ | ||
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बंदा तो इस इक़रार पे बिकता है तेरे हाथ। | बंदा तो इस इक़रार पे बिकता है तेरे हाथ। | ||
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लेना है अगर मोल तो आज़ाद न करना॥ | लेना है अगर मोल तो आज़ाद न करना॥ | ||
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इस छेड़ में कोई जो न मरता है तो मर जाये। | इस छेड़ में कोई जो न मरता है तो मर जाये। | ||
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वादा है कहीं और, इरादा है कहीं और॥ | वादा है कहीं और, इरादा है कहीं और॥ | ||
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क़ाबू से नफ़से-बद को निकलने कभी न दे। | क़ाबू से नफ़से-बद को निकलने कभी न दे। | ||
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फिर शेर है, जो यह सगे-दीवाना छुट गया॥ | फिर शेर है, जो यह सगे-दीवाना छुट गया॥ | ||
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लाय़ा है कोई साथ, न ले जायेगा कोई। | लाय़ा है कोई साथ, न ले जायेगा कोई। | ||
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दौलत हो और आदते-अहसाँ न हो, तो क्या? | दौलत हो और आदते-अहसाँ न हो, तो क्या? | ||
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आँखों में पड़के कहती है यह ख़ाके-रफ़्तगाँ। | आँखों में पड़के कहती है यह ख़ाके-रफ़्तगाँ। | ||
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"सुर्मा ज़रूर दीदये-इबरत में चाहिए"॥ | "सुर्मा ज़रूर दीदये-इबरत में चाहिए"॥ | ||
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न देख अन्दाज़ आईने में अपना, पूछ ले हमसे। | न देख अन्दाज़ आईने में अपना, पूछ ले हमसे। | ||
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ज़माने भर से अच्छा और तेरे सर की क़सम अच्छा॥ | ज़माने भर से अच्छा और तेरे सर की क़सम अच्छा॥ | ||
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00:14, 17 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
न शोख़ी क हया की वज़अ़ में अब फ़र्क़ आता है।
गु़बार ऊँचा न हो जाय कहीं हम ख़ाकसारों का॥
लिहाज़ इतना अभी तक हज़रते-नासेह का बाकी़ है।
वो जो कुछ हुक्म फ़रमाते हैं, कह देते हैं हम ‘अच्छा’॥
बंदा तो इस इक़रार पे बिकता है तेरे हाथ।
लेना है अगर मोल तो आज़ाद न करना॥
इस छेड़ में कोई जो न मरता है तो मर जाये।
वादा है कहीं और, इरादा है कहीं और॥
क़ाबू से नफ़से-बद को निकलने कभी न दे।
फिर शेर है, जो यह सगे-दीवाना छुट गया॥
लाय़ा है कोई साथ, न ले जायेगा कोई।
दौलत हो और आदते-अहसाँ न हो, तो क्या?
आँखों में पड़के कहती है यह ख़ाके-रफ़्तगाँ।
"सुर्मा ज़रूर दीदये-इबरत में चाहिए"॥
न देख अन्दाज़ आईने में अपना, पूछ ले हमसे।
ज़माने भर से अच्छा और तेरे सर की क़सम अच्छा॥