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अलबत तुम सारे जग की रखेल बन सकती
कामान्धिन अयि भ्रष्ट नष्ट शैतान की सखि,
निठुर काम के खेल खेलती चटखारे ले-
गूँथ रही माला अभिनव शिकार के मनके;
सजी दुकानों-सी आँखों में चमक तुम्हारे
दीप पंक्ति से सजे दमकते ज्यों चौबारे,
सुन्दर आँखों का उधार धन लुटा रही हो-
तुम छवि की विपरीत रीति ही चला रही हो।
अंध-बधिर बन यंत्र मनुज की पीर बढ़ाती,
रक्त, मँस मज्जा उसके खा-पी इतराती,
हृदयहीन तुम कोई भी तो दर्पण झाँको-
उड़ती कान्ति ढलकती चमड़ी अपनी आँको
तुम्हें बनाकर माध्यम अपना प्रकृति सयानी
पापाचरण कराती तुमसे लम्पटि रानी,
मस्त मिथुन, परिरम्भन चुम्बन की अवतारी-
काम कलाओं बढ़ी चढ़ी शैतान-सवारी !
मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : रामबहादुर सिंह 'मुक्त'