भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कैसा समय / विश्वनाथप्रसाद तिवारी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=फिर भी कुछ रह जा...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:27, 20 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
साधो!
कैसा नगर है यह
और कैसा समय
अकड़े हैं पुरुष
और जकड़े हैं पुरुष
भरी हैं स्त्रियाँ
और डरी हैं स्त्रियाँ
किलक रहे बच्चे
औ’ कलप रहे बच्चे
साधो!
कैसा नगर है यह
और कैसा समय
सभी दिप रहे
अपनी-अपनी आशा में
सभी छिप रहे
अपनी-अपनी भाषा में
साधो!
कैसा नगर है यह
और कैसा समय?