"आओ ! / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
कुमार मुकुल (चर्चा | योगदान) |
कुमार मुकुल (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
1 | 1 | ||
− | क्यों यह धुकधुकी, डर, - | + | क्यों यह धुकधुकी, डर, - |
− | दर्द की गर्दिश यकायक सॉंस तूफान में गोया। | + | दर्द की गर्दिश यकायक सॉंस तूफान में गोया। |
− | छिपी हुई हाय-हाय | + | छिपी हुई हाय-हाय |
− | में सुकून | + | में सुकून |
की तलाश। | की तलाश। | ||
− | बर्फ के गालों में खोया हुआ | + | बर्फ के गालों में खोया हुआ |
− | या ठंडे पसीने में खामोश है | + | या ठंडे पसीने में खामोश है |
− | शबाब। | + | शबाब। |
तैरती आती है बहार | तैरती आती है बहार | ||
पाल गिराए हुए | पाल गिराए हुए | ||
− | भीने गुलाब - पीले गुलाब | + | भीने गुलाब - पीले गुलाब |
− | के। | + | के। |
तैरती आती है बहार | तैरती आती है बहार | ||
खाब के दरिया में | खाब के दरिया में | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
हैं। | हैं। | ||
− | जाफरान | + | जाफरान |
जो हवा में मिला हुआ | जो हवा में मिला हुआ | ||
− | सांस में भी है। | + | सांस में भी है। |
मुंद गई पलकों में कोई सुबह | मुंद गई पलकों में कोई सुबह | ||
− | जिसे खून के आसार कहेंगे। | + | जिसे खून के आसार कहेंगे। |
− | - खो दिया है मैंने तुम्हें । | + | - खो दिया है मैंने तुम्हें । |
− | 2 | + | 2 |
कौन उधर है ये जिधर घाट की दीवार ... है ? | कौन उधर है ये जिधर घाट की दीवार ... है ? | ||
वह जल में समाती हुयी चली गई है ; | वह जल में समाती हुयी चली गई है ; | ||
लहरों की बूंदों में | लहरों की बूंदों में | ||
− | करोडों किरणों | + | करोडों किरणों |
की जिंदगी | की जिंदगी | ||
− | का नाटक सा : वह | + | का नाटक सा : वह |
− | मैं तो नहीं हूं। | + | मैं तो नहीं हूं। |
फिर क्योंी मुझे [ अंगों में सिमिट कर अपने ] | फिर क्योंी मुझे [ अंगों में सिमिट कर अपने ] | ||
तुम भूल जाती हो | तुम भूल जाती हो | ||
पंक्ति 48: | पंक्ति 48: | ||
x x x | x x x | ||
− | एक गीत मुझे याद है। | + | एक गीत मुझे याद है। |
− | हर रोम के नन्हे -से कली मुख पर कल | + | हर रोम के नन्हे -से कली मुख पर कल |
− | सिहरन की कहानी में था ; | + | सिहरन की कहानी में था ; |
− | हर जर्रे में चुम्ब न की चमक की पहचान। | + | हर जर्रे में चुम्ब न की चमक की पहचान। |
− | पी जाता हूं ऑंसू की कनी-सा वह पल। | + | पी जाता हूं ऑंसू की कनी-सा वह पल। |
ओ मेरी बहार ! | ओ मेरी बहार ! | ||
तू मुझको समझती है बहुत-बहुत - तू जब | तू मुझको समझती है बहुत-बहुत - तू जब | ||
− | यूं ही मुझे बिसरा देती है। | + | यूं ही मुझे बिसरा देती है। |
खुश हूं कि अकेला हूं, कोई पास नहीं है- | खुश हूं कि अकेला हूं, कोई पास नहीं है- | ||
बजुज एक सुराही के | बजुज एक सुराही के | ||
पंक्ति 63: | पंक्ति 63: | ||
जो मेरा पडोसी है मेरी छत पर | जो मेरा पडोसी है मेरी छत पर | ||
बजुज उसके ,जो तुम होतीं - मगर हो फिर भी | बजुज उसके ,जो तुम होतीं - मगर हो फिर भी | ||
− | यहीं कहीं अजब तौर से। | + | यहीं कहीं अजब तौर से। |
तुम आओ, गर आना है | तुम आओ, गर आना है | ||
मेरे दीदों की वीरानी बसाओ | मेरे दीदों की वीरानी बसाओ | ||
पंक्ति 89: | पंक्ति 89: | ||
बादल की हँसी कहें, | बादल की हँसी कहें, | ||
जिसे कोयल की | जिसे कोयल की | ||
− | तूफान-भरी सदियों की | + | तूफान-भरी सदियों की |
चीखें, | चीखें, | ||
− | कि जिसे हम-तुम कहें। | + | कि जिसे हम-तुम कहें। |
− | [ वह गीत तुम्हें भी तो | + | [ वह गीत तुम्हें भी तो |
याद होगा ?] | याद होगा ?] |
19:57, 21 अगस्त 2009 का अवतरण
1 क्यों यह धुकधुकी, डर, - दर्द की गर्दिश यकायक सॉंस तूफान में गोया। छिपी हुई हाय-हाय में सुकून की तलाश।
बर्फ के गालों में खोया हुआ या ठंडे पसीने में खामोश है शबाब।
तैरती आती है बहार पाल गिराए हुए भीने गुलाब - पीले गुलाब के। तैरती आती है बहार खाब के दरिया में उफक से जहां मौत के रंगीन पहाड हैं।
जाफरान जो हवा में मिला हुआ सांस में भी है। मुंद गई पलकों में कोई सुबह जिसे खून के आसार कहेंगे। - खो दिया है मैंने तुम्हें । 2 कौन उधर है ये जिधर घाट की दीवार ... है ? वह जल में समाती हुयी चली गई है ; लहरों की बूंदों में करोडों किरणों की जिंदगी का नाटक सा : वह मैं तो नहीं हूं। फिर क्योंी मुझे [ अंगों में सिमिट कर अपने ] तुम भूल जाती हो पल में : तुम कि हमेशा होगी मेरे साथ, तुम भूल न जाओ मुझे इस तरह।
x x x
एक गीत मुझे याद है। हर रोम के नन्हे -से कली मुख पर कल सिहरन की कहानी में था ; हर जर्रे में चुम्ब न की चमक की पहचान। पी जाता हूं ऑंसू की कनी-सा वह पल।
ओ मेरी बहार ! तू मुझको समझती है बहुत-बहुत - तू जब यूं ही मुझे बिसरा देती है। खुश हूं कि अकेला हूं, कोई पास नहीं है- बजुज एक सुराही के बजुज एक चटाई के बजुज एक जरा से आकाश के जो मेरा पडोसी है मेरी छत पर बजुज उसके ,जो तुम होतीं - मगर हो फिर भी यहीं कहीं अजब तौर से। तुम आओ, गर आना है मेरे दीदों की वीरानी बसाओ शेर में ही तुमको समाना है अगर जिंदगी में आओ मुजस्सिम... बहरतौर चली आओ यहां और नहीं कोई,कहीं भी तुम्हीं होगी, अगर आओ ; तुम्हीं होगी अगर आओ, बहरतौर चली आओ अगर। [ मैं तो हूं साये में बंधा - सा दामन में तुम्हाहरे ही कहीं, एक गिरह - सा साथ तुम्हाुरे ]
तुम आओ, तो खुद घर मेरा आ जाएगा इस कोनो-मकाँ में, तुम जिसकी हया हो, लय हो।
उस ऐन खामोशी की – हया-भरी इन सिम्तोंश की पहनाइयाँ मुझको पहनाओ ! तुम मुझको इस अंदाज में अपनाओ जिसे दर्द की बेगानारवी कहें, बादल की हँसी कहें, जिसे कोयल की तूफान-भरी सदियों की चीखें, कि जिसे हम-तुम कहें। [ वह गीत तुम्हें भी तो याद होगा ?]