भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उसने मेरे बेगानेपन को ही /नचिकेता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
बेगानेपन को ही
 
बेगानेपन को ही
 
छेड़ दिया
 
छेड़ दिया
:घनी उमस में
+
::घनी उमस में
:कभी न उसने
+
::कभी न उसने
:पंखा हाँका है
+
::पंखा हाँका है
:लसिया गए भात को
+
::लसिया गए भात को
:देसी घी से छौंका है
+
::देसी घी से छौंका है
 
दूध मुँहे पाड़े को
 
दूध मुँहे पाड़े को
 
माँ से दूर खदेड़ दिया
 
माँ से दूर खदेड़ दिया
:उसने
+
::उसने
:नागफनी के जंगल में
+
::नागफनी के जंगल में
:कीकर बोया
+
::कीकर बोया
:ख़ुशबू नहीं, चुभन काँटों की
+
::ख़ुशबू नहीं, चुभन काँटों की
:मंज़िल हो गोया
+
::मंज़िल हो गोया
 
उभर रहे
 
उभर रहे
 
स्वेटर का पूरा ऊन
 
स्वेटर का पूरा ऊन
 
उधेड़ दिया
 
उधेड़ दिया
:हरियाली केलिए
+
::हरियाली केलिए
:पेड़ के
+
::पेड़ के
:हरे तने काटे
+
::हरे तने काटे
:बड़े प्यार से पास बुलाकर
+
::बड़े प्यार से पास बुलाकर
:जड़े कई चाँटे
+
::जड़े कई चाँटे
 
उपजाऊ धरती के
 
उपजाऊ धरती के
 
बँटवारे का
 
बँटवारे का
 
मेड़ दिया
 
मेड़ दिया
 
</poem>
 
</poem>

17:04, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

उसने मेरे
बेगानेपन को ही
छेड़ दिया
घनी उमस में
कभी न उसने
पंखा हाँका है
लसिया गए भात को
देसी घी से छौंका है
दूध मुँहे पाड़े को
माँ से दूर खदेड़ दिया
उसने
नागफनी के जंगल में
कीकर बोया
ख़ुशबू नहीं, चुभन काँटों की
मंज़िल हो गोया
उभर रहे
स्वेटर का पूरा ऊन
उधेड़ दिया
हरियाली केलिए
पेड़ के
हरे तने काटे
बड़े प्यार से पास बुलाकर
जड़े कई चाँटे
उपजाऊ धरती के
बँटवारे का
मेड़ दिया