भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पीड़ा / शमशाद इलाही अंसारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशाद इलाही अंसारी |संग्रह= }} Category: कविता <poem> तुम ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:39, 31 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

तुम सोचते हो
मैं अकेला हो गया हूँ, तन्हा हूँ
शायद ऐसा नहीं है
मामला इसके उलट है...

मै विकट, विकराल भीड़ में हूँ
आदमियों की
और उनसे जुडी़
तमाम श्रेष्ठतम आकृतियों
और उपलब्धियों की...

चमकदार, लुभावन हुजूम
और इस भीड़ के मध्य
मेरा वुजूद खो गया है
मै उसे ही खोजता हूँ
वो जो मैं खुद था
"मैं", मेरी निजता- मेरा अकेलापन
मेरी तन्हाईयाँ...सरगोशियाँ...
वो मेरी स्वयं की इकाई।

क्या तुम मेरे इस काम में
मेरी मदद करोगे?
मैं सबसे पूछ्ता हूँ यह यक्ष-प्रश्न
मरे- अधमरे तमाम जीवों से
लेकिन कोई मदद नहीं कर पाता मेरी।

क्योंकि मदद करने के लिये
मेरे प्रश्न का समझना जरुरी है
"स्वयं" का खोया हुआ इंसान
और उसका अपार समूह
मेरे अकेलेपन को कैसे ढूँढ सकता है?

मैं इस भीड़ में
आदमियों की, माल की, बाज़ार की बेइंताह भीड़ में
अकेला नहीं हो पाता
यही पीड़ा़ है।


रचनाकाल : 22.07.2002