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"सर, मुझे पहचाना क्या?" | "सर, मुझे पहचाना क्या?" |
12:58, 1 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
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"सर, मुझे पहचाना क्या?"
बारिश में कोई आ गया
कपड़े थे मुचड़े हुए और बाल सब भीगे हुए
पल को बैठा, फिर हँसा, और बोला ऊपर देखकर
"गंगा मैया आई थीं, मेहमान होकर
कुटिया में रह कर गईं!
माइके आई हुई लड़की की मानिन्द
चारों दीवारों पर नाची
खाली हाथ अब जाती कैसे?
खैर से, पत्नी बची है
दीवार चूरा हो गई, चूल्हा बुझा,
जो था, नहीं था, सब गया!
"’प्रसाद में पलकों के नीचे चार क़तरे रख गई है पानी के!
मेरी औरत और मैं, सर, लड़ रहे हैं
मिट्टी कीचड़ फेंक कर,
दीवार उठा कर आ रहा हूं!"
जेब की जानिब गया था हाथ, कि हँस कर उठा वो...
’न न’, न पैसे नहीं सर,
यूँ ही अकेला लग रहा था
घर तो टूटा, रीढ़ की हड्डी नहीं टूटी मेरी...
हाथ रखिए पीठ पर और इतना कहिए कि लड़ो... बस!"
मूल मराठी से अनुवाद : गुलज़ार