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"ये निकहतों की नर्म रवी, ये हवा ये रात / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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ये निकहतों कि नर्म रवी, ये हवा, ये रात<br> | ये निकहतों कि नर्म रवी, ये हवा, ये रात<br> | ||
− | याद आ रहे हैं | + | याद आ रहे हैं इश्क़ |
− | मासूमियों की गोद में दम | + | के टूटे तअल्लुक़ा |
− | अब भी कोई बना ले तो | + | त<br><br> |
+ | मासूमियों की गोद में दम तोड़्ता है इश्क़्<br> | ||
+ | अब भी कोई बना ले तो बिगड़ी | ||
+ | नहीं है बात<br><br> | ||
इक उम्र कट गई है तेरे इन्तज़ार में<br> | इक उम्र कट गई है तेरे इन्तज़ार में<br> | ||
− | ऐसे भी हैं कि कट | + | ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिनसे एक रात<br><br> |
हम अहले-इन्तज़ार के आहट पे कान थे<br> | हम अहले-इन्तज़ार के आहट पे कान थे<br> | ||
− | + | ठण्डी हवा थी, ग़म था तेरा, ढल चली थी रात<br><br> | |
हर साई-ओ-हर अमल में मोहब्बत का हाथ है<br> | हर साई-ओ-हर अमल में मोहब्बत का हाथ है<br> | ||
तामीर-ए-ज़िन्दगी के समझ कुछ मुहरकात<br><br> | तामीर-ए-ज़िन्दगी के समझ कुछ मुहरकात<br><br> | ||
− | अहल-ए-रज़ा में शान-ए- | + | अहल-ए-रज़ा में शान-ए-बग़ा |
− | इतनी भी ज़िन्दगी | + | वत भी हो ज़रा<br> |
+ | इतनी भी ज़िन्दगी न हो पाबंद-ए-रस्मियात<br><br> | ||
उठ बंदगी से मालिक-ए-तकदीर बन के देख<br> | उठ बंदगी से मालिक-ए-तकदीर बन के देख<br> | ||
− | क्या वसवसा | + | क्या वसवसा अजब का क्या काविश-ए-निज़ात<br><br> |
− | मुझको तो | + | मुझको तो ग़म ने फ़ुर्सत-ए-ग़म |
− | दे फ़ुर्सत-ए-हयात | + | भी न दी फ़िराक<br> |
+ | दे फ़ुर्सत-ए-हयात न जैसे ग़ | ||
+ | म-ए-हयात<br><br> |
23:28, 2 सितम्बर 2009 का अवतरण
ये निकहतों कि नर्म रवी, ये हवा, ये रात
याद आ रहे हैं इश्क़
के टूटे तअल्लुक़ा
त
मासूमियों की गोद में दम तोड़्ता है इश्क़्
अब भी कोई बना ले तो बिगड़ी
नहीं है बात
इक उम्र कट गई है तेरे इन्तज़ार में
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिनसे एक रात
हम अहले-इन्तज़ार के आहट पे कान थे
ठण्डी हवा थी, ग़म था तेरा, ढल चली थी रात
हर साई-ओ-हर अमल में मोहब्बत का हाथ है
तामीर-ए-ज़िन्दगी के समझ कुछ मुहरकात
अहल-ए-रज़ा में शान-ए-बग़ा
वत भी हो ज़रा
इतनी भी ज़िन्दगी न हो पाबंद-ए-रस्मियात
उठ बंदगी से मालिक-ए-तकदीर बन के देख
क्या वसवसा अजब का क्या काविश-ए-निज़ात
मुझको तो ग़म ने फ़ुर्सत-ए-ग़म
भी न दी फ़िराक
दे फ़ुर्सत-ए-हयात न जैसे ग़
म-ए-हयात