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"राजा की बकरियाँ / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

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11:30, 7 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

बाबा ने
बिरवा गुलाब का
घर के आँगन में रोपा था
और सोचा था--
एक दिन पूर्णता पर पहुँचेगा
उल्लास और आनन्द के प्रतीक
लाल-लाल फूलों से दमकेगा
मादक सुगन्ध से पड़ौस भी गमकेगा

किन्तु फूल खिलने से पहले ही
पत्ते और कलियाँ
खा जाती हैं
राजा की बकरियाँ
शेष रह जाते हैं
केवल शूल
जो हाथों में
पाँवो में चुभते हैं
घर भर को दुखते हैं