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"वह / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
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11:42, 7 सितम्बर 2009 का अवतरण
कभी-कभी वह
गुलिवर की तरह
लिलिपुट में आता है
ईंट, पत्थर, लोहा और सीमेंट के
बिलों से
निकलते हैं चूहे
अपनी मूँछों को कँपकपाते हुए
दुम को दबाते हुए
और गुलिवर को देखकर
फिर वापिस बिलों में
घुस जाते हैं
लेकिन जब
गुलिवर सोता है
तब कँपकपाती मूँछों वाले
ये चूहे
उसकी नाक, कान, मुँह में घुसकर
उसकी खोपड़ी को बजबजाते हैं
जैसे चाहते हैं
वैसे सुर निकालते हैं।