"ॐ जय जगदीश हरे / आरती" के अवतरणों में अंतर
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विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा ।<br> | विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा ।<br> | ||
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥ | श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥ | ||
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+ | तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ॥ |
23:58, 8 सितम्बर 2009 का अवतरण
रचनाकार: पं. श्रध्दाराम शर्मा |
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ॥
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता ।
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता ॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति ॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे ।
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥
तन-मन-धन सब है तेरा ।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ॥