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फागुन के दोहे / पूर्णिमा वर्मन

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आम बौराया आँगना कोयल चढ़ी अटार
चंग द्वार दे दादर मौसम हुआ बहार
 
दूब फूल की गुदगुदी बतरस चढी़ मिठास
मुलके दादी भामरी मौसम को है आस
 
वर गेहूँ बाली सजा खड़ी फसल बारात
सुग्गा छेड़े पी कहाँ सरसों पीली गात
 
ॠतु के मोखे सब खड़े पाने को सौगात
मानक बाँटे छाँट्कर टेसू ढ़ाक पलाश
 
ढीठ छोरियाँ तितलियाँ रोके राह बसंत
धरती सब क्यारी हुई अम्बर हुआ पतंग
 
</poem>
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