भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जपाकुसुम का फूल / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
बन पराग, उडा़ दे, रंग दे, केसर मिश्रित धूल!
 
बन पराग, उडा़ दे, रंग दे, केसर मिश्रित धूल!
  
 +
लाल लाल, कोमल पंखुरियाँ, अजुरी भरी गुलाल
 +
रंग भीना, मन मानस तरसे, जपाकुसुम का फूल!
 
</poem>
 
</poem>

00:25, 13 सितम्बर 2009 का अवतरण

झूम झूम झूम तू डा़ली पर झूम, मन मेरे!
बन के, तू जप कुसुम का फूल!

डा़ली की हरियाली से तू खेल खेल खिल जा रे,
ओ मेरे मन झूम तू, बन जपाकुसुम का फूल!

आज फिजा में फैला दे तू, अपनी चितवन का रूप,
बन पराग, उडा़ दे, रंग दे, केसर मिश्रित धूल!

लाल लाल, कोमल पंखुरियाँ, अजुरी भरी गुलाल
रंग भीना, मन मानस तरसे, जपाकुसुम का फूल!