"कहो कहाँ हो आमेना / धर्मेन्द्र पारे" के अवतरणों में अंतर
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+ | से तुम नहीं बोलती | ||
+ | कहां हो आखिर तुम आमेना? | ||
+ | आमेना तुमने तो कहा था | ||
+ | लोककथाआें की पिरयों की तरह तुम्हारी जान | ||
+ | नज्मों में अटकी है | ||
+ | धरती पर जिस लम्हा नज्म खतम होगी | ||
+ | उस घड़ी तुम भी खतम हो जाआेगी | ||
+ | कहां हो आखिर तुम आमेना? | ||
+ | कई शब्दों को हौले हौले | ||
+ | कई कई रातों तक तराशा मैंने | ||
+ | तुम कहीं क्यों नहीं उभरती आमेना? | ||
+ | कितने शब्दों को कुरेदा | ||
+ | कई शब्दो का हृदय चीरकर देखा | ||
+ | कई शब्दों को फूलों के बीच छुपाया | ||
+ | कई शब्दों को शबनम में पकाया | ||
+ | तुम कहीं भी मुकम्मल नहीं होती | ||
+ | क्या शब्दों से परे हो गई हो आमेना? | ||
+ | इतनी जल्दी | ||
+ | सात जनम भी खत्म हो जाते हें | ||
+ | क्या ऐसे ही ? | ||
+ | बहुत याद आती हो आमेना | ||
+ | बहुत बहुत ज्यादा | ||
+ | हम शब्दों को खटखटाते हैं किवाड़ों की तरह | ||
+ | पूछते हें पता तुम्हारा | ||
+ | शब्दों की दुनिया तो बहुत बड़ी है बहुत किठन है | ||
+ | क्या शब्दों से बड़ी हो गई हो तुम आमेना? | ||
+ | क्या इसे ही शब्दातीत कहते हें आमेना ? | ||
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01:00, 13 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
कहो कहां हो
आमेना?
शब्दों से बहुत प्यार करती थी
क्या शब्दों में ही खो गई ?
बहुत से शब्दों को मैंने पुकारा
आमेना उन लफ्जों के भीतर
से तुम नहीं बोलती
कहां हो आखिर तुम आमेना?
आमेना तुमने तो कहा था
लोककथाआें की पिरयों की तरह तुम्हारी जान
नज्मों में अटकी है
धरती पर जिस लम्हा नज्म खतम होगी
उस घड़ी तुम भी खतम हो जाआेगी
कहां हो आखिर तुम आमेना?
कई शब्दों को हौले हौले
कई कई रातों तक तराशा मैंने
तुम कहीं क्यों नहीं उभरती आमेना?
कितने शब्दों को कुरेदा
कई शब्दो का हृदय चीरकर देखा
कई शब्दों को फूलों के बीच छुपाया
कई शब्दों को शबनम में पकाया
तुम कहीं भी मुकम्मल नहीं होती
क्या शब्दों से परे हो गई हो आमेना?
इतनी जल्दी
सात जनम भी खत्म हो जाते हें
क्या ऐसे ही ?
बहुत याद आती हो आमेना
बहुत बहुत ज्यादा
हम शब्दों को खटखटाते हैं किवाड़ों की तरह
पूछते हें पता तुम्हारा
शब्दों की दुनिया तो बहुत बड़ी है बहुत किठन है
क्या शब्दों से बड़ी हो गई हो तुम आमेना?
क्या इसे ही शब्दातीत कहते हें आमेना ?