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"हँसी आ रही है / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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हँसी आ रही है सवेरे से मुझको  
 
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कि क्या घेरते हो अंधेरे में मुझको!
 
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शिकायत नहीं क्यों कि मतलब नहीं है  
 
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न ख़ालिक न मालिक न चेरे से मुझको!
 
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11:13, 15 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

हँसी आ रही है सवेरे से मुझको
कि क्या घेरते हो अंधेरे में मुझको!

बँधा है हर एक नूर मुट्ठी में मेरी
बचा कर अंधेरे के घेरे से मुझको!

करें आप अपने निबटने की चिंता
निबटना न होगा निबेरे से मुझको!

अगर आदमी से मोहब्बत न होती
तो कुछ फ़र्क पड़ता न टेरे से मुझको!

मगर आदमी से मोहब्बत है दिल से
तो क्यों फ़र्क पड़ता न टेरे से मुझको!

शिकायत नहीं क्यों कि मतलब नहीं है
न ख़ालिक न मालिक न चेरे से मुझको!