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"पूछेगी कल मेरी पोती / राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'" के अवतरणों में अंतर

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दुनिया के सारे रत्नों से
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मूल्यवान गीतों के अक्षर
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फिर भी बुआ दहेज पीड़िता है
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अपनी अम्मा क्यों है रोती
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भावों के खिलते उपवन में
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तुम गीतों की हरित पाँखुरी
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शब्दों के स्वर के शिल्पी तुम
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कान्हा की रसभरी बाँसुरी
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सत्य राम के उद्दीपक हो
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हर अँधियारे की छाती पर
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जल उठने वाले दीपक हो
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हर मशाल आँखों के आगे
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फिर भी रही ज्योति क्यों खोती
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प्यासों ने जब पानी माँगा
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तुम ने गाईं मेघ मल्हारें
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बिकी भूख में विवश जवानी
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तुम तक पहुँची नहीं पुकारें
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भोले बचपन को खाया जब
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शोषण के आदमखोरों ने
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लूट लिया जब सारे घर को
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मालिक बनकर कुछ चोरों ने
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तब भी क्यों रह गई तुम्हारी
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यह वाचाल लेखनी सोती
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समझो बाबा गीत वही है
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जो दुखियों की पीड़ा गाए
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सच के लिए झूठ के सम्मुख
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विंध्याचल बनकर डट जाए
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थके पसीने के अधरों पर
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मुस्कानों के फूल खिला दे
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सूखे मरुथल-सी आँखों में
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जो आशा का नीर पिला दे
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सरस्वती के कंठहार का
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गीत वही होता है मोती
 
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18:54, 15 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

बाबा! यह खुशबू क्या होती
पूछेगी कल मेरी पोती

तुम ने लिखा कि गीत तुम्हारा
खुशबू वाला शिलालेख है
उषा के अरुणिम अधरों पर
चंदनगंधी स्वर्ण रेख है
मरणशील इस धरा धाम पर
तुम हो कालजयी यायावर
दुनिया के सारे रत्नों से
मूल्यवान गीतों के अक्षर

फिर भी बुआ दहेज पीड़िता है
अपनी अम्मा क्यों है रोती

भावों के खिलते उपवन में
तुम गीतों की हरित पाँखुरी
शब्दों के स्वर के शिल्पी तुम
कान्हा की रसभरी बाँसुरी
झूठ दशानन के विरुद्ध तुम
सत्य राम के उद्दीपक हो
हर अँधियारे की छाती पर
जल उठने वाले दीपक हो

हर मशाल आँखों के आगे
फिर भी रही ज्योति क्यों खोती

प्यासों ने जब पानी माँगा
तुम ने गाईं मेघ मल्हारें
बिकी भूख में विवश जवानी
तुम तक पहुँची नहीं पुकारें
भोले बचपन को खाया जब
शोषण के आदमखोरों ने
लूट लिया जब सारे घर को
मालिक बनकर कुछ चोरों ने

तब भी क्यों रह गई तुम्हारी
यह वाचाल लेखनी सोती

समझो बाबा गीत वही है
जो दुखियों की पीड़ा गाए
सच के लिए झूठ के सम्मुख
विंध्याचल बनकर डट जाए
थके पसीने के अधरों पर
मुस्कानों के फूल खिला दे
सूखे मरुथल-सी आँखों में
जो आशा का नीर पिला दे

सरस्वती के कंठहार का
गीत वही होता है मोती