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"जान ही लेने की हिकमत में तरक़्क़ी देखी / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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जान ही लेने की हिकमत में तरक़्क़ी देखी
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मुझको हैरत है यह किस पेच में आया ज़ाहिद
 
मुझको हैरत है यह किस पेच में आया ज़ाहिद
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'''शब्दार्थ :
 
हिकमत= विधि;
 
दामे-हस्ती= जीवन रूपी जाल;
 
सौदा=आशिक;
 
 
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17:32, 16 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

जान ही लेने की हिकमत<ref>विधि</ref> में तरक़्क़ी देखी
मौत का रोकने वाला कोई पैदा न हुआ

उसकी बेटी ने उठा रक्खी है दुनिया सर पर
ख़ैरियत गुज़री कि अंगूर के बेटा न हुआ

ज़ब्त से काम लिया दिल ने तो क्या फ़ख़्र करूँ
इसमें क्या इश्क की इज़्ज़त थी कि रुसवा न हुआ

मुझको हैरत है यह किस पेच में आया ज़ाहिद
दामे-हस्ती<ref>जीवन रूपी जाल</ref> में फँसा, जुल्फ़ का सौदा<ref>आशिक</ref> न हुआ

शब्दार्थ
<references/>