भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कायाकल्प / गिरिधर राठी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(द्विजेन्द्र द्विज (वार्ता) के अवतरण 54943 को प) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= गिरधर राठी | |रचनाकार= गिरधर राठी |
22:20, 17 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
फिर क्या हो जाता है
कि क्लास-रूम बन जाता है काफ़ी-हाउस
घर मछली बाज़ार?
कोई नहीं सुनता किसी की
मगर खुश-खुश
फेंकते रहते हैं मुस्कानें
चुप्पी पर,
या फिर जड़ देते नग़ीने !
करिश्मे अजीबोग़रीब -
और किसी का हाथ नज़र भी नहीं आता -
पहलू बदलते ही
जार्ज पंचम हो जाते हैं जवाहर लाल !