भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मित्र / संजय कुंदन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय कुंदन |संग्रह= }} <poem> एक क़िले के सामने एक राज...)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
एक क़िले के सामने
+
एक दिन मेरे सबसे क़रीबी मित्र ने
एक राजा के गुणों का
+
हत्यारों का समर्थन किया और बोला
बखान करते हुए वह
+
उन्हें हत्यारा न कहा जाए
उत्सुकता से पर्यटकों को देख रहा था।
+
वे हमारी संस्कृति के रक्षक हैं
वह टटोल रहा था
+
फिर उसने मुझसे संस्कृति पर
कि पर्यटक उस राजा के वैभव से
+
बातचीत बंद कर दी
अभिभूत हो रहे हैं या नहीं
+
हमारी बातचीत में अब रोज़मर्रा की चीज़ें ही रह गईं
वह एक राजा के पक्ष में
+
खाना-पीना कपड़ा-लत्ता वगैरह
इस तरह बोल रहा था
+
फिर एक दिन महंगाई पर बात निकली
जैसे दरबारी या चारण हो
+
और मित्र ने कहा- उन्हें ही सरकार बनाने का
उसका इतिहास राजा के शयन कक्ष से शुरू होकर
+
मौका मिलना चाहिए
क़िलों, तोपों, जूतों, वस्त्रों से होता हुआ
+
उन हत्यारों को?
रसोई में समाप्त हो जाता था
+
- मैंने पूछा
वह राजा की पराजय और समझौतों पर
+
उन्हें हत्यारा मत कहो
कुछ नहीं बोलता था
+
- वह चीखा
तरह-तरह की मुद्राएँ बनाकर
+
फिर उस दिन से महंगाई पर
स्वर में उतार-चढ़ाव लाकर
+
हम लोगों की चर्चा बंद हो गई
वह प्रयत्न कर रहा था
+
अब हम लोग सिर्फ़ पुराने दिनों की बात करते
कि उसे माना जाए राजा का समकालीन
+
बीते दिनों को, अपने बचपन को याद करते
उसे ही स्वीकार किया जाए
+
एक दिन बात करते-करते
उस युग का एकमात्र प्रवक्ता
+
हम एकदम पीछे लौट गए
वह चाहता था
+
लौटते चले गए इतिहास में  
कि पर्यटक उसे अतीत में बैठा हुए देखें
+
मित्र ने कहा
पर वह दिखता था एकदम
+
- इतिहास में सब कुछ अच्छा है
वर्तमान का आदमी
+
फिर से कायम होनी चाहिए
अपने को एक अनदेखे युग का
+
वही पुरानी व्यवस्था
हिस्सा बनाने की हर कोशिश में
+
ठीक कहते हैं वे लोग
वो विफल हो रहा था
+
मैने पूछा
बड़ी प्यारी लग रही थी उसकी विफलता।
+
- कौन, वे हत्यारे?
 +
उन्हें हत्यारा मत कहो
 +
- वह चीखा
 +
उस दिन से हमलोगों की बातचीत
 +
एकदम ही बंद हो गई
 +
कम हो गया मिलना-जुलना फिर भी खत्म नहीं हुई मित्रता।
 
</poem>
 
</poem>

17:55, 18 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

एक दिन मेरे सबसे क़रीबी मित्र ने
हत्यारों का समर्थन किया और बोला
उन्हें हत्यारा न कहा जाए
वे हमारी संस्कृति के रक्षक हैं
फिर उसने मुझसे संस्कृति पर
बातचीत बंद कर दी
हमारी बातचीत में अब रोज़मर्रा की चीज़ें ही रह गईं
खाना-पीना कपड़ा-लत्ता वगैरह
फिर एक दिन महंगाई पर बात निकली
और मित्र ने कहा- उन्हें ही सरकार बनाने का
मौका मिलना चाहिए
उन हत्यारों को?
- मैंने पूछा
उन्हें हत्यारा मत कहो
- वह चीखा
फिर उस दिन से महंगाई पर
हम लोगों की चर्चा बंद हो गई
अब हम लोग सिर्फ़ पुराने दिनों की बात करते
बीते दिनों को, अपने बचपन को याद करते
एक दिन बात करते-करते
हम एकदम पीछे लौट गए
लौटते चले गए इतिहास में
मित्र ने कहा
- इतिहास में सब कुछ अच्छा है
फिर से कायम होनी चाहिए
वही पुरानी व्यवस्था
ठीक कहते हैं वे लोग
मैने पूछा
- कौन, वे हत्यारे?
उन्हें हत्यारा मत कहो
- वह चीखा
उस दिन से हमलोगों की बातचीत
एकदम ही बंद हो गई
कम हो गया मिलना-जुलना फिर भी खत्म नहीं हुई मित्रता।