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"है प्रदूषण की ज़रूरी रोकथाम / अहमद अली 'बर्क़ी' आज़मी" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=अहमद अली 'बर्क़ी' आज़मी
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<poem>है प्रदूषण की ज़रूरी रोक थाम
 
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सब का जीना कर दिया जिसने हराम
 
सब का जीना कर दिया जिसने हराम

01:03, 19 सितम्बर 2009 का अवतरण

है प्रदूषण की ज़रूरी रोक थाम
सब का जीना कर दिया जिसने हराम
आधुनिक युग का यह एक अभिशाप है
जिस पे आवश्यक लगाना है लगाम
है कयोटो सन्धि बिल्कुल निष्क्रिय
है ज़रूरी जिसका करना एहतेराम
अब बडे शहरोँ मेँ जीना है कठिन
ज़हर का हम पी रहे हैँ एक जाम
है प्रदूषित हर जगह वातावरण
काम हो जाए न हम सब का तमाम
बढ़ रहा है दिन बदिन ओज़ोन होल
है ज़ुबाँ पर हर किसी की जिसका नाम
है गलोबल वार्मिंग का सब को भय
लेती है प्राकृकि से जो इंतेक़ाम
आज मायंमार है इसका शिकार
कल न जाने हो कहाँ यह बेलगाम
इसका जारी हर जगह प्रकोप है
हो नगर 'अहमद अली' या हो ग्राम