भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ओ प्रिया / ओम प्रभाकर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रभाकर |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> ओ प्रिया पिन्हाऊँ...)
(कोई अंतर नहीं)

20:19, 21 सितम्बर 2009 का अवतरण

ओ प्रिया
पिन्हाऊँ तुम्हें जुही के झुमके।

इस फूली संझा के तट पर,
आ बैठें बिल्कुल सट-सटकर,
दृष्टि कहे जो
उसे सुनें तो
अर्थ खिलेंगे नए आज गुमसुम के।

किरन बनाती तुझे सुहागिन,
आँखें खोल अरी बैरागिन,
इत-उत अहरह
अहरह इत-उत
लट ले तेरी मदिर हवा के ठुमके।