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"होली का वह दिन / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
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होली का दिन था | होली का दिन था | ||
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भंग पी ली थी हम ने उस शाम | भंग पी ली थी हम ने उस शाम | ||
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घूम रहे थे, झूम रहे थे | घूम रहे थे, झूम रहे थे | ||
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माल रोड पर बीच-सड़क हम सरेआम | माल रोड पर बीच-सड़क हम सरेआम | ||
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नशे में थी तू परेशान कुछ | नशे में थी तू परेशान कुछ | ||
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गुस्से में मुझ पर दहाड़ रही थी | गुस्से में मुझ पर दहाड़ रही थी | ||
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बरबाद किया है जीवन तेरा मैं ने | बरबाद किया है जीवन तेरा मैं ने | ||
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कहकर मुझे लताड़ रही थी | कहकर मुझे लताड़ रही थी | ||
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मैं सकते में था | मैं सकते में था | ||
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किसी चूहे-सा डरा हुआ था | किसी चूहे-सा डरा हुआ था | ||
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ऊपर से सहज लगता था पर | ऊपर से सहज लगता था पर | ||
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भीतर गले-गले तक भरा हुआ था | भीतर गले-गले तक भरा हुआ था | ||
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तू पास थी मेरे उस पल-छिन | तू पास थी मेरे उस पल-छिन | ||
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बहुत साथ तेरा मुझे भाता था | बहुत साथ तेरा मुझे भाता था | ||
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औ' उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे | औ' उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे | ||
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यह विचार भी मन में आता था | यह विचार भी मन में आता था | ||
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(रचनाकाल : 2006) | (रचनाकाल : 2006) |
20:50, 22 सितम्बर 2009 का अवतरण
होली का दिन था
भंग पी ली थी हम ने उस शाम
घूम रहे थे, झूम रहे थे
माल रोड पर बीच-सड़क हम सरेआम
नशे में थी तू परेशान कुछ
गुस्से में मुझ पर दहाड़ रही थी
बरबाद किया है जीवन तेरा मैं ने
कहकर मुझे लताड़ रही थी
मैं सकते में था
किसी चूहे-सा डरा हुआ था
ऊपर से सहज लगता था पर
भीतर गले-गले तक भरा हुआ था
तू पास थी मेरे उस पल-छिन
बहुत साथ तेरा मुझे भाता था
औ' उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे
यह विचार भी मन में आता था
(रचनाकाल : 2006)