भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आना / केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("आना / केदारनाथ सिंह" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop])
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ सिंह  
 
|संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ सिंह  
 
}}
 
}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
आना
 
आना

14:05, 25 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

आना
जब समय मिले
जब समय न मिले
तब भी आना

आना
जैसे हाथों में
आता है जांगर
जैसे धमनियों में
आता है रक्त
जैसे चूल्हों में
धीरे-धीरे आती है आँच
आना

आना जैसे बारिश के बाद
बबूल में आ जाते हैं
नए-नए काँटे

दिनों को
चीरते-फाड़ते
और वादों की धज्जियाँ उड़ाते हुए
आना

आना जैसे मंगल के बाद
चला आता है बुध
आना