भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खज़ाना / अब्दुल्ला पेसिऊ" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=अब्दुल्ला पेसिऊ |संग्रह= }} Category:अरबी भाषा <Poem> ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:26, 26 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
|
दुनिया जब से बनी है
तभी से
लगा हुआ है आदमी
कि हाथ लग जाए उसके
मोतियों के
सोने और चांदी के खज़ाने
सब कुछ
सागर तल से लेकर
पर्वत शिखर तक
पर मेरे हाथ लगता है बिला नागा
सुबह-सवेरे एक खज़ाना
मुझे दिख जाती हैं
आधी तकिया पर अल्हड़ पसरी हुई सलवटें।
अंग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र