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बरसे मेघ भरी दोपहर, क्षण भर बूंदें आईं
उमस मिटी धरती की साँसे भीतर तक ठंडाईं
आँखें खोलें बीज उमग कर गगन निहारें
क्या बद्दल तक जा पाएंगे पात हमारे?