भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिन जल्दी जल्दी ढलता है / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन | |संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन | ||
}} | }} | ||
− | |||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! | दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! | ||
− | |||
हो जाए न पथ में रात कहीं, | हो जाए न पथ में रात कहीं, | ||
− | |||
मंजिल भी तो है दूर नहीं- | मंजिल भी तो है दूर नहीं- | ||
− | |||
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है! | यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है! | ||
− | |||
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! | दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! | ||
− | |||
बच्चे प्रत्याशा में होंगे, | बच्चे प्रत्याशा में होंगे, | ||
− | |||
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-- | नीड़ों से झाँक रहे होंगे-- | ||
− | |||
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है! | यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है! | ||
− | |||
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! | दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! | ||
− | |||
मुझसे मिलने को कौन विकल? | मुझसे मिलने को कौन विकल? | ||
− | |||
मैं होऊँ किसके हित चंचल?-- | मैं होऊँ किसके हित चंचल?-- | ||
− | |||
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है! | यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है! | ||
− | |||
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! | दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! | ||
+ | </poem> |
10:15, 3 अक्टूबर 2009 का अवतरण
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे--
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?--
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!