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"संगतराश / गिरिराज किराडू" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिराज किराडू }} {{KKCatKavita‎}} <poem> शायद एक वही सब कुछ पह...)
 
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20:58, 4 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

शायद एक वही सब कुछ पहले से जानता था सब कुछ पहले से तराश रखा था उसने
वह हमेशा वीराने में रहता था और एक दिन अचानक उसके वीराने में जो बहार चली आएगी
उसकी आँखें ग़ज़ब की होंगी जब दूसरे ख़्वाब देख रहे होंगे वह बस अपनी आँखें देखेगी

वो हकीकत ही क्या जिसे मुजुस्तमा न बनाया जा सके वह बहार से कहेगा और बेतहाशा हँसने लगेगा