"नया पाठ / शिवप्रसाद जोशी" के अवतरणों में अंतर
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संदेश कहता है बस बहुत हुआ
यही है मेरा जवाब
संकेत कहता है लो आगे की मुझसे सुनो
पंक्तियों के बीच न जाओ
न देखो अतिरिक्त
संकेत कहता है
देख लो मैं हूँ तो वहीं
संदेश कहता है
नहीं नहीं नहीं
इसमें हां की तरह नाचता रहता है संकेत
इतना ज़िद्दी और धुन का पक्का होता है वो
अर्थ में उसकी जगह हमेशा है
संदेश को कहाँ पता चलती है
संकेत की शैतानियाँ
और मायनों में उसके निशान
वह देर-सबेर चला तो जाता है
ठिकाने पर
बाज़ दफ़ा वहाँ पहले से मौजूद रहता है संकेत...
मसलन उत्तेजना में हाँफ़ता संदेश कहता है किसी से कान में
मैं सारे संकेतों को मिटा दूंगा एक दिन
मुझे सब पता है
क्या मतलब आपका
आखिर चाहते क्या हैं आप
धीरे से उठता है एक आदमी
सिगरेट की राख को किसी संकेत की तरह गिराकर
और लौटने लगता है
भारी मन के साथ।