भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मनुष्य बनो हमारी तरह / शिवप्रसाद जोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवप्रसाद जोशी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> तुम अगर हँस...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:29, 7 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
तुम अगर हँसते हो
तो इसे अभिमान समझ लेंगे
तुम रोओगे
तो आत्मदया होगी
कहोगे कि तुम कपटी और चालाक नहीं
ये हुई अपनी तारीफ़
तुम कुछ नहीं कहोगे
कुछ भी नहीं
तो तुम डरपोक कहलाओगे
या तुमसे डर लगेगा
तुम बात करोगे
तो वो बतंगड़ होगी
ग़र्ज़ ये कि
तुम निकल जाओ यहाँ से
हमें यहाँ सीधे-सादे लोग चाहिए
मनुष्य होने का ये मतलब ये नहीं
दिमाग खपाएँ हर बात पर
और दिल तो हरग़िज़ नहीं