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"बात इतनी सी / शिवप्रसाद जोशी" के अवतरणों में अंतर
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फ़िक्र तुम्हें सिर्फ़ अपनी है
गुस्सा तुम्हें इसलिए आता है कि कोई तुम्हें नहीं समझता
तुम्हारी खीझ में है विचलन और अहम
तुम चाहते हो तुम्हारी चुप्पी को हम महान मान लें
और हमेशा तुम्ही सही हो ये हो नहीं सकता
तुम फ़िक्र करते लोगों की...
गुस्सा तुम्हारा व्यर्थ का न होता
खीझते न तुम निपटते गलतियों से
बोलते खुलकर साफ़-साफ़
सुन लेते दूसरों को...
तो शायद टूटती ये दीवार
तो शायद तुमसे डर न लगता
तो शायद तुम कुछ समझ पाते
तो शायद तुम्हारे लिए बेहतर होता...
इतनी सी बात को समझने के लिए
क्या घुटनों तक बढ़ाओगे दाढ़ी