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"आप की हँसी / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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निर्धन जनता का शोषण है<br />
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18:18, 9 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे