भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ओस / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी }} हरी घास पर बिखेर दी हैं ये किसने म...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
 
|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<poem>
 
हरी घास पर बिखेर दी हैं
 
हरी घास पर बिखेर दी हैं
 
+
ये किसने मोती की लड़ियाँ?
ये किसने मोती की लड़‍ियाँ?
+
 
+
 
कौन रात में गूँथ गया है
 
कौन रात में गूँथ गया है
 
 
ये उज्‍ज्‍वल हीरों की करियाँ?
 
ये उज्‍ज्‍वल हीरों की करियाँ?
 
  
 
जुगनू से जगमग जगमग ये
 
जुगनू से जगमग जगमग ये
 
 
कौन चमकते हैं यों चमचम?
 
कौन चमकते हैं यों चमचम?
 
 
नभ के नन्‍हें तारों से ये
 
नभ के नन्‍हें तारों से ये
 
 
कौन दमकते हैं यों दमदम?
 
कौन दमकते हैं यों दमदम?
 
  
 
लुटा गया है कौन जौहरी
 
लुटा गया है कौन जौहरी
 
 
अपने घर का भरा खजा़ना?
 
अपने घर का भरा खजा़ना?
 
 
पत्‍तों पर, फूलों पर, पगपग
 
पत्‍तों पर, फूलों पर, पगपग
 
 
बिखरे हुए रतन हैं नाना।
 
बिखरे हुए रतन हैं नाना।
 
  
 
बड़े सवेरे मना रहा है
 
बड़े सवेरे मना रहा है
 
 
कौन खुशी में यह दीवाली?
 
कौन खुशी में यह दीवाली?
 
 
वन उपवन में जला दी है
 
वन उपवन में जला दी है
 
 
किसने दीपावली निराली?
 
किसने दीपावली निराली?
 
  
 
जी होता, इन ओस कणों को
 
जी होता, इन ओस कणों को
 
 
अंजली में भर घर ले आऊँ?
 
अंजली में भर घर ले आऊँ?
 
 
इनकी शोभा निरख निरख कर
 
इनकी शोभा निरख निरख कर
 
 
इन पर कविता एक बनाऊँ।
 
इन पर कविता एक बनाऊँ।
 +
</poem>

09:45, 17 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

हरी घास पर बिखेर दी हैं
ये किसने मोती की लड़ियाँ?
कौन रात में गूँथ गया है
ये उज्‍ज्‍वल हीरों की करियाँ?

जुगनू से जगमग जगमग ये
कौन चमकते हैं यों चमचम?
नभ के नन्‍हें तारों से ये
कौन दमकते हैं यों दमदम?

लुटा गया है कौन जौहरी
अपने घर का भरा खजा़ना?
पत्‍तों पर, फूलों पर, पगपग
बिखरे हुए रतन हैं नाना।

बड़े सवेरे मना रहा है
कौन खुशी में यह दीवाली?
वन उपवन में जला दी है
किसने दीपावली निराली?

जी होता, इन ओस कणों को
अंजली में भर घर ले आऊँ?
इनकी शोभा निरख निरख कर
इन पर कविता एक बनाऊँ।