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"गिरते जीवन को उठा दिया, / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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तुमने कितना धन लुटा दिया! | तुमने कितना धन लुटा दिया! | ||
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+ | मन की उलझन से छुटा दिया। | ||
+ | बैठाला ज्योतिर्मुख करकर, | ||
+ | खोली छवि तमस्तोम हरकर, | ||
+ | मानस को मानस में भरकर, | ||
+ | जन को जगती से खुटा दिया। | ||
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+ | पंजर के निर्जर के रथ से, | ||
+ | सन्तुलिता को इति से, अथ से, | ||
+ | बरने को, वारण के पथ से, | ||
+ | काले तारे को टुटा दिया। | ||
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14:44, 18 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
गिरते जीवन को उठा दिया,
तुमने कितना धन लुटा दिया!
सूखी आशा की विषम फांस,
खोलकर साफ की गांस-गांस,
छन-छन, दिन-दिन, फिर मास-मास,
मन की उलझन से छुटा दिया।
बैठाला ज्योतिर्मुख करकर,
खोली छवि तमस्तोम हरकर,
मानस को मानस में भरकर,
जन को जगती से खुटा दिया।
पंजर के निर्जर के रथ से,
सन्तुलिता को इति से, अथ से,
बरने को, वारण के पथ से,
काले तारे को टुटा दिया।