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कहियौ, नंद कठोर भये / सूरदास

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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग गौरी
राग गौरी  <poem>
कहियौ, नंद कठोर भये।
 
हम दोउ बीरैं डारि परघरै, मानो थाती सौंपि गये॥
 
तनक-तनक तैं पालि बड़े किये, बहुतै सुख दिखराये।
 
गो चारन कों चालत हमारे पीछे कोसक धाये॥
 
ये बसुदेव देवकी हमसों कहत आपने जाये।
 
बहुरि बिधाता जसुमतिजू के हमहिं न गोद खिलाये॥
 
कौन काज यहि राजनगरि कौ, सब सुख सों सुख पाये।
 
सूरदास, ब्रज समाधान करु, आजु-काल्हि हम आये॥
</poem>
भावार्थ :- श्रीकृष्ण अपने परम ज्ञानी सखा उद्धव को मोहान्ध ब्रजवासियों में ज्ञान
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