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"है हरि नाम कौ आधार / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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सूर, हरि कौ भजन करतहिं गयौ मिटि भव-भार॥ | सूर, हरि कौ भजन करतहिं गयौ मिटि भव-भार॥ | ||
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16:32, 24 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
राग केदारा
है हरि नाम कौ आधार।
और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि-ब्यौहार॥
नारदादि सुकादि संकर कियौ यहै विचार।
सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई घृत-सार॥
दसहुं दिसि गुन कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार।
सूर, हरि कौ भजन करतहिं गयौ मिटि भव-भार॥
भावार्थ :- `हरि-भजन' ही मुक्ति का सर्वोत्कृष्ट और तत्काल फलदायक साधन है।
इसलिए `सब तज, हरि भज' ही मुख्य है।
शब्दार्थ :- आधार = भरोसा। बिधि =वेदोक्त कर्म-कांड से आशय है। ब्यौहार =क्रिया, साधन। सुक =शुकदेव। इतौई =इतना ही। गुन =गुण-सत्व, रज और तमोगुण। जार =जाल। भवभार =जन्म मरण के चक्र से अभिप्राय है।