भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पुकार / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> किसी शेर की तरह दह…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:26, 27 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
किसी शेर की तरह
दहाड़ता नहीं प्रेम
वह पुकारता है
मोर की तरह
मनुहार करता
वह पुकार ही सकता है
जैसे मैं पुकार रहा हूँ तुम्हें
नज़रें चुरा के
तुम अपना चेहरा छिपाती हो
प्रेम का नाम आते ही
छुई-मुई-सी लजा जाती हो
यह प्रेम नहीं तो
बताओ ओर क्या है ?