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"ककहरा / कुमार अजय" के अवतरणों में अंतर

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12:36, 27 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

याद है तुम्हें ?
आग उगलती लू
और चमकती धूप में
पसीने में तर
जेठ की मंझ दुपहरी में
समूची दुनिया से
गिनती के क्षण चुराकर
जिंदगी की पाटी पर
हमने मिलकर लिखा था
प्रीत का ककहरा।

उस दिन से
उस धूप-छाँह को
निगाहों में थामे
तुम्हारे इन्तज़ार में बेठा हूँ।

यदि अब भी
चुरा सको
एक-आध क्षण तो
दुहरा जाओ
उस पाठ को।


मूल राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा