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केवल प्रीत ही
शक्ति है
जिसके बहाने
जीवित है
पत्थर
खजुराहो में।
वरना
मेरी तरह
आपने भी तो
देखें होंगे
ढोएँ होंगे
पत्थर
हाड-माँस के।
मूल राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा