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"मुझे फूल मत मारो / मैथिलीशरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर
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01:08, 28 अक्टूबर 2009 का अवतरण
मुझे फूल मत मारो
मैं अबला बाला वियोगिनी कुछ तो दया विचारो।
होकर मधु के मीत मदन पटु तुम कटु गरल न गारो
मुझे विकलता तुम्हें विफलता ठहरो श्रम परिहारो।
नही भोगनी यह मैं कोई जो तुम जाल पसारो
बल हो तो सिन्दूर बिन्दु यह, यह हर नेत्र निहारो
रूप दर्प कंदर्प तुम्हें तो मेरे पति पर वारो
लो यह मेरी चरण धूलि उस रति के सिर पर धारो।