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"स्नेह-रीति / सियाराम शरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>"दीप, तू जा…)
 
 
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"प्रज्वलित होता रहा, अच्छा हुआ,"
 
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दीप बोला - "जागना मेरा सफल।
 
दीप बोला - "जागना मेरा सफल।
अब सुजागृति नें तुझे आ कर छुआ,
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अब सुजागृति ने तुझे आ कर छुआ,
 
पा सकूँगा सुप्ति-सुख मैं भी विमल!"</poem>
 
पा सकूँगा सुप्ति-सुख मैं भी विमल!"</poem>

09:57, 29 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

"दीप, तू जागृत रहा है रात भर
और मैं बेसुध पड़ा सोता रहा।
हाय, अत्याचार यह निज गात पर,
स्नेह - सह तू प्रज्ज्वलित होता रहा।"

"प्रज्वलित होता रहा, अच्छा हुआ,"
दीप बोला - "जागना मेरा सफल।
अब सुजागृति ने तुझे आ कर छुआ,
पा सकूँगा सुप्ति-सुख मैं भी विमल!"