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"जुल्फ़ के फन्दे / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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उस ज़ुल्फ़ के फन्दे में यों कौन अटकता है
 
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ज्यों चोर किसी जगह रस्से से लटकता है
 
ज्यों चोर किसी जगह रस्से से लटकता है
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यह कहके ’नज़ीर’ अपना सर गम से पटकता है
 
यह कहके ’नज़ीर’ अपना सर गम से पटकता है
 
दिल बन्द हुआ यारो! देखो तो कहाँ जाकर
 
दिल बन्द हुआ यारो! देखो तो कहाँ जाकर
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11:37, 30 अक्टूबर 2009 का अवतरण

उस ज़ुल्फ़ के फन्दे में यों कौन अटकता है
ज्यों चोर किसी जगह रस्से से लटकता है
काँटे की तरह दिल में ग़म आके खटकता है
यह कहके ’नज़ीर’ अपना सर गम से पटकता है
दिल बन्द हुआ यारो! देखो तो कहाँ जाकर