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तमस हर तरफ़ खिंचा-पसरा था | तमस हर तरफ़ खिंचा-पसरा था |
23:42, 31 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
तमस हर तरफ़ खिंचा-पसरा था
जैसे खड़ा था सामने एक भयानक रीछ
और हम सहमे हुए थे
खो गया था सबका दिशाबोध
घड़ियों में ज़रूर बज रहा था कुछ
पता नहीं कहाँ पर थे उस वक़्त खड़े हम
ख़त्म हो जाने के खिलाफ़ मूक
किसी भी छोर से सूरज उगने तक
हमने बचाई किसी तरह
जीवन की लौ