"ज्योतिष है तो / अच्युतानंद मिश्र" के अवतरणों में अंतर
छो (हिज्जे) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | बहुत कुछ नक्षत्रों के ज्ञान पर निर्भर करता है | ||
+ | नक्षत्र हैं तो उनकी स्थिति बताने वाला ज्योतिष शास्त्र है | ||
+ | ज्योतिष है तो उसे पढ़ने समझने वाले ज्योतिषि हैं | ||
+ | ज्योतिषि हैं तो उनकी दक्षिणा है और उस पर टिका | ||
+ | उनका खाता पीता परिवार है | ||
+ | मतलब कि नक्षत्रों की स्थिति पर निर्भर करता | ||
+ | एक भरा पूरा संसार है | ||
+ | नक्षत्रों को लेकर बहुत सावधान रहते थे पिता | ||
+ | कभी यात्रा पर निकलते | ||
+ | तो ज्योतिषि से साइत जरूर निकलवाते | ||
+ | उनकी अटूट श्रद्धा थी ज्योतिष के ज्ञान पर | ||
+ | मज़े की बात ये कि जब भी पिता | ||
+ | यात्रा पर निकलने को होते | ||
+ | तो उसी आस पास ज्योतिष | ||
+ | अच्छी तिथि निकाल देते | ||
− | + | एक बार दूर की यात्रा पर तिथि निकलवा कर | |
− | + | टिकट लिया था पिता ने | |
− | + | पर बंगाल से आने वाली उनकी ट्रेन | |
− | + | बाढ के कारण नियत समय से विलंब से आई | |
− | + | और तब तक तिथि बदल चुकी थी | |
− | + | व्यापार का मामला था घाटा लग सकता था | |
− | + | सो पंडित जी की बातों को याद कर | |
+ | लौट गये पिता | ||
+ | और व्यापार का ठेका किसी और को मिल गया | ||
+ | पर पिता खुश थे कि कौन जाने | ||
+ | पंडित जी की बात ना मान जाने पर कोई | ||
+ | बडी दुर्घटना हो जाती | ||
− | + | एक बार वृद्ध नाना जी की बीमारी की ख़बर सुन | |
− | + | मायके जाने को बेचैन माँ के जाने की साइत निकालने को | |
− | + | ज्योतिषि जी को बुलाया गया | |
− | + | पर पूरब में जाने की आस पास कोई अच्छी तिथि नहीं थी | |
− | + | पर नाना जी की मौत शायद | |
− | + | साइत के लिए नहीं रूकती | |
− | + | सो ज़्यादा विरोध ना कर पिता ने माँ को जाने दिया | |
− | अच्छी तिथि | + | |
− | + | आखिर नाना जी की मृत्यु हो गई | |
− | + | और माँ ख़ुश थी कि अगर वह ज्योतिषि जी के कहे अनुसार | |
− | + | विदा न होती तो नाना जी को आख़िरी बार | |
− | + | नहीं देख पाती | |
− | + | पंडित जी का तर्क था कि अशुभ साइत में जाने से | |
− | + | नाना जी असमय काल कवलित हो गए | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | आखिर नाना जी की मृत्यु हो गई | + | |
− | और माँ ख़ुश थी कि अगर वह ज्योतिषि जी के कहे अनुसार | + | |
− | विदा न होती तो नाना जी को आख़िरी बार | + | |
− | नहीं देख पाती | + | |
− | पंडित जी का तर्क था कि अशुभ साइत में जाने से | + | |
− | नाना जी असमय काल कवलित हो गए | + | |
और पिता खुश थे ज्योतिषि जी के ज्ञान पर। | और पिता खुश थे ज्योतिषि जी के ज्ञान पर। | ||
+ | </poem> |
11:20, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
बहुत कुछ नक्षत्रों के ज्ञान पर निर्भर करता है
नक्षत्र हैं तो उनकी स्थिति बताने वाला ज्योतिष शास्त्र है
ज्योतिष है तो उसे पढ़ने समझने वाले ज्योतिषि हैं
ज्योतिषि हैं तो उनकी दक्षिणा है और उस पर टिका
उनका खाता पीता परिवार है
मतलब कि नक्षत्रों की स्थिति पर निर्भर करता
एक भरा पूरा संसार है
नक्षत्रों को लेकर बहुत सावधान रहते थे पिता
कभी यात्रा पर निकलते
तो ज्योतिषि से साइत जरूर निकलवाते
उनकी अटूट श्रद्धा थी ज्योतिष के ज्ञान पर
मज़े की बात ये कि जब भी पिता
यात्रा पर निकलने को होते
तो उसी आस पास ज्योतिष
अच्छी तिथि निकाल देते
एक बार दूर की यात्रा पर तिथि निकलवा कर
टिकट लिया था पिता ने
पर बंगाल से आने वाली उनकी ट्रेन
बाढ के कारण नियत समय से विलंब से आई
और तब तक तिथि बदल चुकी थी
व्यापार का मामला था घाटा लग सकता था
सो पंडित जी की बातों को याद कर
लौट गये पिता
और व्यापार का ठेका किसी और को मिल गया
पर पिता खुश थे कि कौन जाने
पंडित जी की बात ना मान जाने पर कोई
बडी दुर्घटना हो जाती
एक बार वृद्ध नाना जी की बीमारी की ख़बर सुन
मायके जाने को बेचैन माँ के जाने की साइत निकालने को
ज्योतिषि जी को बुलाया गया
पर पूरब में जाने की आस पास कोई अच्छी तिथि नहीं थी
पर नाना जी की मौत शायद
साइत के लिए नहीं रूकती
सो ज़्यादा विरोध ना कर पिता ने माँ को जाने दिया
आखिर नाना जी की मृत्यु हो गई
और माँ ख़ुश थी कि अगर वह ज्योतिषि जी के कहे अनुसार
विदा न होती तो नाना जी को आख़िरी बार
नहीं देख पाती
पंडित जी का तर्क था कि अशुभ साइत में जाने से
नाना जी असमय काल कवलित हो गए
और पिता खुश थे ज्योतिषि जी के ज्ञान पर।