भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"और ही राग / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अजित कुमार | |रचनाकार=अजित कुमार | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
टेबिल टाप पर तुम्हारी उँगलियाँ | टेबिल टाप पर तुम्हारी उँगलियाँ | ||
− | |||
पड़ी हुई थीं निर्जीव | पड़ी हुई थीं निर्जीव | ||
− | |||
और मैं प्रतीक्षा में थी दम साधे | और मैं प्रतीक्षा में थी दम साधे | ||
− | |||
कि अब वे हरकत करेंगी- | कि अब वे हरकत करेंगी- | ||
− | |||
धिनक धिनक धिन्... धिनक धिन्... | धिनक धिनक धिन्... धिनक धिन्... | ||
− | |||
रच दोगे तुम एक अनोखा संगीत | रच दोगे तुम एक अनोखा संगीत | ||
− | |||
जिसकी लय पर मैं थिरकने लगूंगी | जिसकी लय पर मैं थिरकने लगूंगी | ||
− | |||
धिनक धिनक्... धिन्... ता... | धिनक धिनक्... धिन्... ता... | ||
− | |||
पर वे थीं कि हिले-डुले बिना | पर वे थीं कि हिले-डुले बिना | ||
− | |||
वैसी ही थमी रहीं उसी जगह अचल | वैसी ही थमी रहीं उसी जगह अचल | ||
− | |||
गहरे मौन का या निष्प्रभ जीवन का | गहरे मौन का या निष्प्रभ जीवन का | ||
− | |||
एक और ही राग अलापती हुईं | एक और ही राग अलापती हुईं | ||
− | |||
जिसमें डूबती–डूबती मैं जा पहुँची अतल में । | जिसमें डूबती–डूबती मैं जा पहुँची अतल में । | ||
+ | </poem> |
11:37, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
टेबिल टाप पर तुम्हारी उँगलियाँ
पड़ी हुई थीं निर्जीव
और मैं प्रतीक्षा में थी दम साधे
कि अब वे हरकत करेंगी-
धिनक धिनक धिन्... धिनक धिन्...
रच दोगे तुम एक अनोखा संगीत
जिसकी लय पर मैं थिरकने लगूंगी
धिनक धिनक्... धिन्... ता...
पर वे थीं कि हिले-डुले बिना
वैसी ही थमी रहीं उसी जगह अचल
गहरे मौन का या निष्प्रभ जीवन का
एक और ही राग अलापती हुईं
जिसमें डूबती–डूबती मैं जा पहुँची अतल में ।