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जिनमें से एक ने प्रेम किया मुझसे | जिनमें से एक ने प्रेम किया मुझसे | ||
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ज्यों बूंदों ने धरती से , | ज्यों बूंदों ने धरती से , | ||
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दूसरी ने घृणा जतलाई | दूसरी ने घृणा जतलाई | ||
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जैसे बलिपशु ने बधिक से : | जैसे बलिपशु ने बधिक से : | ||
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::अंन्तरम से उदभूत भावनाएँ। | ::अंन्तरम से उदभूत भावनाएँ। | ||
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तीसरी ने मन दिया मुझे | तीसरी ने मन दिया मुझे | ||
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जैसे सुरभि ने पवन को, | जैसे सुरभि ने पवन को, | ||
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चौथी ने तन देना चाहा | चौथी ने तन देना चाहा | ||
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उर्वशी ने अर्जुन को ज्यों : | उर्वशी ने अर्जुन को ज्यों : | ||
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:: भक्ति-आसक्ति के परस्पर विरोधी अनुभव। | :: भक्ति-आसक्ति के परस्पर विरोधी अनुभव। | ||
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पाँचवीं ने मुझ पर सर्वस्व वार दिया | पाँचवीं ने मुझ पर सर्वस्व वार दिया | ||
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ज्यों शेफ़ाली करती समर्पण हर सुबह, | ज्यों शेफ़ाली करती समर्पण हर सुबह, | ||
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और छठी ने मेरा सर्वस्व लेना चाहा | और छठी ने मेरा सर्वस्व लेना चाहा | ||
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वामन ने बलि का जैसे : | वामन ने बलि का जैसे : | ||
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:मानव-विकारों के अदभुत उदाहरण्। | :मानव-विकारों के अदभुत उदाहरण्। | ||
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सातवीं उमड़ी मुझ तक | सातवीं उमड़ी मुझ तक | ||
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चांद के प्रति लहरों के आवेग की भाँति, | चांद के प्रति लहरों के आवेग की भाँति, | ||
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आठवीं हटी मुझसे | आठवीं हटी मुझसे | ||
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पाप जैसे मन्दिर से : | पाप जैसे मन्दिर से : | ||
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::जीवन के 'पल-पल परिवर्तित' व्यवहार। | ::जीवन के 'पल-पल परिवर्तित' व्यवहार। | ||
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बदला मैं, | बदला मैं, | ||
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जुड़ा और टूटा भी, | जुड़ा और टूटा भी, | ||
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मिला और छूटा भी, | मिला और छूटा भी, | ||
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उठा और गिरा, | उठा और गिरा, | ||
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कभी मुक्त, कभी घिरा रहा | कभी मुक्त, कभी घिरा रहा | ||
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उन सबके कारण । | उन सबके कारण । | ||
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और वे सबकी सब- | और वे सबकी सब- | ||
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आठों, दसों या बीसों : | आठों, दसों या बीसों : | ||
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केवल एक 'तुम' थीं । | केवल एक 'तुम' थीं । | ||
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19:42, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
जिनमें से एक ने प्रेम किया मुझसे
ज्यों बूंदों ने धरती से ,
दूसरी ने घृणा जतलाई
जैसे बलिपशु ने बधिक से :
अंन्तरम से उदभूत भावनाएँ।
तीसरी ने मन दिया मुझे
जैसे सुरभि ने पवन को,
चौथी ने तन देना चाहा
उर्वशी ने अर्जुन को ज्यों :
भक्ति-आसक्ति के परस्पर विरोधी अनुभव।
पाँचवीं ने मुझ पर सर्वस्व वार दिया
ज्यों शेफ़ाली करती समर्पण हर सुबह,
और छठी ने मेरा सर्वस्व लेना चाहा
वामन ने बलि का जैसे :
मानव-विकारों के अदभुत उदाहरण्।
सातवीं उमड़ी मुझ तक
चांद के प्रति लहरों के आवेग की भाँति,
आठवीं हटी मुझसे
पाप जैसे मन्दिर से :
जीवन के 'पल-पल परिवर्तित' व्यवहार।
बदला मैं,
जुड़ा और टूटा भी,
मिला और छूटा भी,
उठा और गिरा,
कभी मुक्त, कभी घिरा रहा
उन सबके कारण ।
और वे सबकी सब-
आठों, दसों या बीसों :
केवल एक 'तुम' थीं ।